बुधवार, 29 जनवरी 2014

जब गणतंत्र स्वतंत्र राष्ट्र का छणिक लोभ का भिखमंगा हो



जब गणतंत्र स्वतंत्र राष्ट्र का छणिक लोभ का भिखमंगा हो 
जब बचपन सड़कों में दिन भर भीख मांगता हो नंगा हो 
जब धर्मों का गली गली में बेमतलब खूनी दंगा हो 
ऐसे में मेरी भारत माँ क्यूँ कर के ना शर्मिंदा हो ||

जब अपने ही इन्द्रप्रस्थ में मौन साधना अनुयायी हों 
पश्चिम की कुलवधू हमारी बन बैठी सौतन माई हो 
ख़ूनी पंजे के हाथों में झाडू की गर्दन आई हो 
गांधी के सिद्धांतो से जब केवल कुर्सी भरपाई हो 
आम आदमी गांधी टोपी डाल मचाता हुड्दंगा हो 
ऐसे में मेरी भारत माँ क्यूँ कर के ना शर्मिंदा हो ||

आप बाप बनते ही करता हो सड़कों में रावण लीला 
भ्रष्टाचार मिटाने वाला ही चुन ले जब झाड़ कंटीला 
गांधी टोपी डाल सड़क पर आ जाएँ जब मुन्नी शीला 
बिक जाए विश्वास कलम का राह बनाता हो पथरीला 
स्वार्थ साधने की खातिर ही मानव् जब केवल जिन्दा हो 
ऐसे में मेरी भारत माँ क्यूँ कर के ना शर्मिंदा हो ||

लायक को नालायक कहने की जब अपनों ने ठानी हो 
नमो मन्त्र जपने वाला जब लगता सबको अज्ञानी हो 
आरक्षण का गोरख धंधा करने की ही मनमानी हो 
जातिवाद का जहर सभी को लगता गंगा का पानी हो 
धर्मों की रस्सी का सबके गले पड़ा फांसी फंदा हो 
ऐसे में मेरी भारत माँ क्यूँ कर के ना शर्मिंदा हो ||
  

मनोज 

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