शुक्रवार, 1 मार्च 2013

सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं




सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं 
नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||

नहीं है तू कहीं भी अब मेरी कल की तमन्ना में 
जूनून -ए - इश्क की अब भी मगर अंगड़ाइयां क्यूँ हैं ?

मिटा डाले सभी नगमे मुहोबत्त के तराने सब
अमर अब भी मेरे दिल में तेरी रुबाइयां क्यूँ हैं ||

बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम ये मुझको
गिनाते लोग मुझको आपकी अच्छाइयां क्यूँ हैं ||

सुना है प्यार का घर है खुदा के नूर से रौशन
हमारे प्यार में फिर हिज्र की सच्चाईयां क्यूँ है ||

सुबह से शाम तक मिलती नहीं फुर्सत जमाने से
लबों पर है हंसी दिल में बसी तन्हाईयाँ क्यूँ हैं ||

मुहोब्बत हूँ कोई तो एक दिन दिल में बसाएगा
तुम्हारे हुश्न पर पड़ने लगी ये झाइयां क्यूँ हैं ||

मिटा डाली सभी यादें कहीं दिल में दफ़न कर दी
बिना बदनामियों के मिल रही रुसवाइयां क्यूँ हैं ||

सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं
नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||.................manoj

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (02-03-2013) के चर्चा मंच 1172 पर भी होगी. सूचनार्थ

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  2. बहुत बहुत आभार आपका मित्र |

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  3. धन्यवाद रचना दीक्षित जी

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  4. सुना है प्यार का घर है खुदा के नूर से रौशन
    हमारे प्यार में फिर हिज्र की सच्चाईयां क्यूँ है..

    ये भी तो प्यार का ही एक रंग है ...
    लाजवाब शेर है ...

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